October 6, 2025

आपदा के दौर में समाज का राजनैतिक संगठन

समाज का एक आम नागरिक अपने ही जातिवर्ग के सामाजिक राजनैतिक संगठन की मार झेलने को मजबूर है। जिसका मूल कारण है समाज के पड़े-लिखे विद्वानों का मौन रहना ओर दबंगो द्वारा किए जा रहे अत्याचार को जबरिया सहन करना। किसी विद्वान-ज्ञानी ने क्या खूब कहा है -: परिवार और समाज दोनों ही बर्बाद होने लगते है, जब समझदार मौन ओर बेवकूफ अपना हलक फाड़ते है। हालांकि बेवकूफ इसमें एक तुच्छ मानसिकता का परिचय देता है। जिसे समाजजन सहर्ष स्वीकार करते है।

आज वर्तमान में कोविड 19 के महामारी के दौर में मानवता इंसानियत से बढ़कर राजनैतिक संगठनों का बोलबाला है। यह राजनीतिक संगठन घोर आपदा के वक्त भी सत्ता की रोटी सेक अवसर की तलाश में जुटे है। जिसके चलते सामाजिक संगठन में गुटबाजी के चलते एक दूसरे को नीचा दिखाने के प्रयास किया जा रहा है। आज जरूरत है समाज के शिक्षित वर्ग को आगे आने की जो अपनी आंखे मूंदे-मुंह छिपाए बैठे है। जो अटल सत्य है।

भारत की महान हस्ती नोबल पुरस्कृत रविन्द्रनाथ टैगोर ने भी कहा है जब तक मे जिंदा हु, देशभक्ति को मानवता से ऊपर नही होने दूंगा। लेकिन आज के दौर में इसके विपरीत हो रहा है। इस आपदा के दौर में मानवता, इंसानियत ओर भुखमरी में समाज मे राहत के नाम पर भाजपा और कांग्रेस जैसे राजनैतिक दलों के झंडे उठाए जा रहे है जिसमे भी अंतरकलह ओर गुटबाजी देखने को मिल रही है। जो समाज को आगे बढ़ाने के बजाए बर्बादी की ओर धकेल रही है। क्या यही निस्वार्थ समाजसेवा है या समाज को बना दिया गया है राजनीति का अखाड़ा।

तमाम अविकसित समाज में कुछ ऐसे लोग पदों पर आसीन है जो कपड़े तो खादी के पहनते है लेकिन शिक्षा निम्न स्तर की होती है। जो अपने बीबी बच्चों को न संभाल पाए ओर बन बैठे है समाजसेवी, जिनकी स्वयं के घर-परिवार में इज्जत नही वह समाज का झंडा क्या ऊंचा करेगा। आप कल्पना कर सकते है कि ऐसा व्यक्ति समाज को कहा ले जाएगा जो खुद छुट भैये नेताओ की गुलामी करने को मजबूर है। ऐसा समाजसेवी झूठा वोट बैंक दिखा राजनेताओ को भी भ्रमित कर रहा है कि मेरे साथ समाज है। में लिखता सिर्फ इसलिए हु की आने वाली समाज की नस्ले अंधी, गूंगी ओर बहरी न रह जाए।

पिछड़ा वर्ग में तमाम ऐसे नेताओ की भरमार है जिनकी उम्र गुजर गई राजनीति करते-करते लेकिन आज तक पार्टी में मध्यप्रदेश तो छोड़ो जिले में भी सम्मान जनक पद हासिल न कर सके, कई ऐसे नेता भी है जो दो-तीन बार विधानसभा लड़ चुके होते लेकिन उन्हें आज तक पार्षद का टिकट भी नसीब न हुआ, इसका मुख्य कारण है कि वह नेता समय के हिसाब से न खुद में बदलाव ला पाए न समाज मे, वक्त है बदलाव का जो वक्त के साथ बदल गया वो छोटी उम्र में भी उच्च पदों पर आसीन हो गया ऐसे कई प्रमाण शहर की जनता के सामने मौजूद है। नेता जी अब गले ओर हाथ मे सोने की मोटी-मोटी चेन डालने ओर खादी के कपड़े पहनने से काम नही चलेगा – जनता भी जागरूक हो रही है, चाहे वह शहर की बात हो या समाज की।

जिसकी लाठी उसकी भैस यह कहावत भी समाज मे सक्रिय नजर आ रही है जिसके चलते दंबगो ने समाज पर कब्जा जमाए रखा है और समाज के वोट बैंक की आड़ में राजनीति कर रहे है जिसका लाभ समाज को पहुचने के बजाए व्यक्तिगत भुनाया जा रहा है। जिसके चलते सामाजिक आड़ में दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की की जा रही है, जहाँ सब गोलमाल जारी है। और समाज आज भी वही खड़ा है, आज समय है कि समाज के नेता समाज के हित में स्वयं की राजनीति न करते हुए समाज के लिए मूल्य आधारित राजनीति करें। स्वयं के साथ समाज का भी विकास करे, यही विनय है। कुछ लोगो ने राजनीति की आड़ में समाज को भी आर्थिक लाभ भी पहुचाया है उनको दिल से बधाई।

आपदा के दौर में राजनीति नही करना चाहिए समाजसेवा का पहला लक्ष्य होता है मानवता बस यही धर्म निभाना है इस बुरे दौर में न तो कांग्रेस घर राशन पहुँचा रही नही भाजपा फिर गुणगान क्यो ? देश भक्ति से भी पहले मानवता को स्थान दिया गया है फिर समाजसेवा ओर अंत मे राजनीति जिसका आज उल्टा होता प्रतीत हो रहा है।

सामाजिक आयोजन में राजनेता क्यो ? विचारणीय है, उससे समाज का लाभ या अन्य का, नियमो के विपरीत पदाधिकारी, अब सहन नही होगा।

नोट -: उक्त सभी विचार मेरे व्यक्तिगत है, इसका किसी समाज एवं अन्य व्यक्ति से कोई लेना-देना नही है।

किशोर सिंह
पत्रकार एवं स्वतंत्र लेखक
इंदौर/भोपाल (मध्यप्रदेश)
संपर्क -: 9425160040